शरद पूर्णिमा 6 अक्टूबर दिन सोमवार को पड़ रही है. हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार शरद पूर्णिमा पर भद्रा का साया भी रहने वाला है, जिसके कारण पूजा और व्रत के शुभ मुहूर्तों को लेकर दुविधा उत्पन्न हो गई है. ऐसे में ज्योतिषिवदों की विस्तृत गणना के अनुसार, भक्तों को कुछ विशिष्ट समयों में ही पूजा-पाठ और खीर बनाने का कार्य करना होगा ताकि उन्हें माँ लक्ष्मी और चंद्र देव का आशीर्वाद मिल सके।
शरद पूर्णिमा का महत्व और भद्रा का प्रभाव
शरद पूर्णिमा, जिसे 'कोजागरी पूर्णिमा' भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में विशेष स्थान रखती है। माना जाता है कि इसी रात चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है और उसकी किरणों से अमृत वर्षा होती है, जो स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करती है। इसी कारण इस दिन खीर बनाकर रात भर चांद की रोशनी में रखा जाता है।
हालांकि, 6 अक्टूबर को पड़ने वाली इस पूर्णिमा पर भद्रा का वास रहेगा। ज्योतिषीय मान्यताओं में भद्रा काल को अशुभ माना जाता है और इस दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्य, यज्ञ या विशेष पूजा अनुष्ठान करना वर्जित होता है। भद्रा के प्रभाव के कारण, पूर्णिमा की पूजा को भद्रा समाप्त होने के बाद ही संपन्न करना उचित होगा।
पूर्णिमा तिथि और भद्रा काल का समय
ज्योतिषियों के मतानुसार, भद्राकाल की शुरुआत और अंत निम्नलिखित समयसारणी के अनुसार होगा, जिसे ध्यान में रखते हुए ही शुभ कार्यों की योजना बनानी चाहिए:
विवरण | समय |
---|---|
पूर्णिमा तिथि का आरंभ | 5 अक्टूबर (रविवार) 06:15 PM से |
पूर्णिमा तिथि की समाप्ति | 6 अक्टूबर (सोमवार) 08:30 PM तक |
भद्रा काल आरंभ | 6 अक्टूबर, सुबह 07:00 AM से |
भद्रा काल समाप्ति | 6 अक्टूबर, शाम 06:45 PM तक |
चंद्रोदय का समय | 6 अक्टूबर, शाम 05:40 PM के आसपास |
ज्योतिषिवदों की विशेष सलाह: पूजा और अमृत खीर का शुभ मुहूर्त
भद्रा के साये में होने के कारण, ज्योतिषिवदों की स्पष्ट सलाह है कि सभी प्रमुख अनुष्ठान भद्रा समाप्त होने के बाद ही किए जाएं।
चंद्र देव की पूजा का शुभ मुहूर्त: चूंकि भद्रा शाम 6:45 बजे समाप्त हो रही है, और चंद्रोदय 5:40 PM पर हो जाएगा, इसलिए चंद्र देव की पूजा का सबसे उत्तम समय शाम 06:45 PM से लेकर रात्रि 09:00 PM के बीच होगा। इस समय विधि-विधान से माता लक्ष्मी और चंद्रदेव की पूजा करना अत्यंत फलदायी रहेगा।
खीर बनाने और रखने का समय: अमृत खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखने का कार्य भद्रा समाप्त होने के बाद ही किया जाना चाहिए। भक्तजन शाम 07:00 बजे के बाद खीर को चंद्र की रोशनी में रख सकते हैं। ध्यान रहे कि खीर को पूरी रात चांद की रोशनी में रखा जाए और उसे अगले दिन ब्रह्म मुहूर्त में प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाए।
व्रत का पारण: पूर्णिमा व्रत का पारण 6 अक्टूबर को चंद्र देव की पूजा के बाद, या 7 अक्टूबर को सूर्योदय से पूर्व खीर प्रसाद ग्रहण करके किया जा सकता है।
ज्योतिषी यह भी बताते हैं कि चूंकि शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा अपनी पूर्ण ऊर्जा में होता है, इसलिए भद्रा काल केवल पूजन संबंधी कार्यों को बाधित करता है, न कि चंद्रमा की किरणों के औषधीय प्रभाव को। इसलिए, खीर को खुले आकाश के नीचे रखने में कोई दोष नहीं है, बशर्ते उसे स्थापित करने का कार्य भद्रा समाप्त होने के बाद किया जाए।
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